हस्तिनापुर की अर्वाचीन स्थिति- कहते हैं कि सन् १९४८ में भारत के प्रधानमंत्री स्व. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उजड़े हुए हस्तिनापुर को पुनः बसाया था जो कि ‘‘हस्तिनापुर सेन्ट्रल टाउन’’ के नाम से जाना जाता है। वहाँ आज लगभग २० हजार की जनसंख्या है एवं शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, डाक व्यवस्था, आवागमन सुविधा आदि के समस्त साधन वहाँ सरकार की ओर से उपलब्ध हैं। टाउनेरिया की सक्रियता से हस्तिनापुर कस्बे की सारी जनता प्रसन्नतापूर्वक अपना जीवनयापन करती है। यहाँ हिन्दू-मुसलमान, पंजाबी-बंगाली सभी जाति के लोग जातीय एकता के साथ अपने-अपने धर्म एवं ईश्वर की उपासना करते हैं।
तीर्थक्षेत्र की अवस्थिति- सेन्ट्रल टाउन से लगभग डेढ़किमी. दूर जैन तीर्थ क्षेत्र का अवस्थान है। मेरठ से रामराज जाती हुई मुख्य सड़क से बाई ओर लगभग ४०० वर्ष पुराना प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर है। वहाँ के परिसर में अन्य कई नये मंदिरों का निर्माण हुआ है तथा इस मंदिर के सामने एक श्वेताम्बर जैन मंदिर भी है। इनकी परम्परा के स्थानकवासी आम्नाय के स्थल भी वहाँ निर्मित हैं। मंदिर से जम्बूद्वीप के आगे जंगलों में चार तीर्थंकरों के जन्म की प्रतीक नसियाएं दिगम्बर जैन समाज की तथा एक श्वेताम्बर समाज की है, जहाँ भक्तगण श्रद्धापूर्वक दर्शन करने जाते हैं।
जम्बूद्वीप रचना तीर्थक्षेत्र की प्रगति का मुख्य कारण है- सन् १९७४ में जब से हस्तिनापुर की धरा पर परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी ने जम्बूद्वीप रचना का शिलान्यास करवाया, तब से तो वहाँ की ख्याति देश-विदेश में फैल गई है। १०१ फुट ऊँचे सुमेरु पर्वत से समन्वित जम्बूद्वीप की रचना में विराजमान २०५ जिनबिम्ब जहाँ श्रद्धालुओं के पापक्षय में निमित्त हैं, वहीं गंगा-सिंधु आदि नदियाँ, हिमवन आदि पर्वत, भरत-ऐरावत आदि क्षेत्र, लवण समुद्र जनमानस के लिए मनोरंजन के साधन भी हैं। बिजली-फौव्वारों की तथा हरियाली की प्राकृतिक शोभा देखने हेतु दूर-दूर से लोग जाकर वहाँ स्वर्ग सुख जैसी अनुभूति करते हैं।